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शहनाज अख्तर भजन,, जरा थाली बजा देना।

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Indira sagar dam... Rainbows

*भारतीय संस्कृति में क्वारेटाइन या सूतक का महत्व*

#क्वारेंटाईन या #सूतक का महत्व।। *हम तो आदिकाल से क्वारेंटाईन करते हैं, तुम्हें अब समझ आया* -------------------- *त्वरित टिप्पणी* -------------------- *आज जब सिर पर घूमता एक वायरस हमारी मौत बनकर बैठ गया तब हम समझें कि हमें क्वारेंटाईन होना चाहिये, मतलब हमें ‘‘सूतक’’ से बचना चाहिये। यह वही ‘सूतक’ है जिसका भारतीय संस्कृति में आदिकाल से पालन किया जा रहा है। जबकि विदेशी संस्कृति के नादान लोग हमारे इसी ‘सूतक’ को समझ नहीं पा रहे थे। वो जानवरों की तरह आपस में चिपकने को उतावले थे ? वो समझ ही नहीं रहे थे कि मृतक के शव में भी दूषित जीवाणु होते हैं ? हाथ मिलाने से भी जीवाणुओं का आदान-प्रदान होता है ? और जब हम समझाते थे तो वो हमें जाहिल बताने पर उतारु हो जाते । हम शवों को जलाकर नहाते रहे और वो नहाने से बचते रहे और हमें कहते रहे कि हम गलत हैं और आज आपको कोरोना का भय यह सब समझा रहा है।* 👉 *हमारे यहॉ बच्चे का जन्म होता है तो जन्म ‘‘सूतक’’ लागू करके मॉ-बेटे को अलग कमरे में रखते हैं, महिने भर तक, मतलब क्वारेंटाईन करते हैं।* 👉 हमारे यहॉ कोई मृत्यु होने पर परिवार सूतक में रहता है लगभग 12 द...

एक माँ का संघर्ष

सुबह के पौने तीन (2:45) और एक माँ का संघर्ष।। उक्त दृश्य आज सुबह का है। लोकेशन 11057-पठानकोट एक्सप्रेस, जनरल बोगी का है। गाड़ी नाशिक रेल्वे स्टेशन पर है। एक गरीब माँ जिसके तीन बच्चे है। एक बेटी ढाई साल की, एक बेटा एक साल 6 महीने का और गोद में एक दूध पीती मासूम सी बच्ची। वह महिला बाजु वाली बोगी से निकलकर मेरी वाली बोगी में आकर दरवाजे पर ही बैठ जाती हैं। पूछने पर उसने कहा की बच्चे भीड़ के वजह से रो रहे थे तो उधर से लोगो ने भाग दिया। मेने कहा भीड़ तो यहाँ भी बहोत है। उसने कहा देखते है साहब। कुछ देर बाद ट्रेन स्टेशन छोड़ रही है, ट्रैन में हवा काफी तेज लगने लगी है। बच्चे सोने के लिए रो रहे, बिलक रहे है या फिर शायद भूख से, कुछ समझ नही आ रहा। वो एक एक कर तीनो को सुलाने का प्रयास कर रही हैं, उस बिच जिद करते बच्चो को पिट भी रही है। कुछ देर बाद बच्चे सो जाते है, अब सुबह की ठण्ड लगने लगी है।बच्चो को उड़ाने ,ढकने का वह हर संभव प्रयास कर रही हैं उसके पास सिवाए अपने आँचल के बच्चो को उड़ने के लिए कुछ भी नही है। वो खूद भी नींद के झोंको से लड़ रही है। बार बार वह रट बिलखते बस्कचो को थपथपाती तो कभी अपन...