सुकून को तरसता मेरा मन,
पग-पग ,डगर- डगर,
गली, मोहल्ला हर नगर-नगर,
बीहड़, कानन और वृन्दावन,
तट, नभ, कलरव न माने मन।।
घर, कुटुंब और जिम्मेदारी,
दिनचर्या हो गई व्यस्त सारी।।
अब तो मन में एक ही आस
मिल जाये चैन की सांस,
कुछ पल बिताऊँ अपनों साथ,
है सकून अब तो लौट आ मेरे पास,
फिर भी अधूरा पाता हूँ मै खुदको,
फिरता हूं उदास- उदास, फिरता हूं उदास उदास, है सकूँ।।

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